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आप से मिलके हम कुछ बदल से गए, शेर पढ़ने लगे, गुनगुनाने लगे
हमको लोगों से मिलने का कब शौक था, महफिलाराई का कब हमें जौक था
आपके वास्ते हमने ये भी किया, मिलने जुलने लगे, आने जाने लगे
हमने जब आपकी देखी दिलचस्पियां, आ गईं चंद हममें भी तब्दीलियां
इक मुसव्विर से भी हो रही दोस्ती, और गज़लें भी सुनने सुनाने लगे
आप के बारे में पूछ बैठा कोई, क्या कहें हमसे क्या बदहवासी हुई
कहनेवालीं जो थी बातें वो ना कहीं, बात जो थी छुपानी बताने लगे
इश्क बेघर करे इश्क बेदर करे, इश्क का सच है कोई ठिकाना नहीं
हम जो कल तक ठिकाने के थे आदमी, आपसे मिलके कैसे ठिकाने लगे
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किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह
किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह
बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
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मंत्र कविता
-नागार्जुन
ॐ शब्द ही ब्रह्म है
ॐ शब्द और शब्द और शब्द और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्राएं
ॐ वक्तव्य, ॐ उदूगार, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण...
ॐ प्रवचन...
ॐ हुंकार, ॐ फटकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चित्कार
ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे और नारे