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- Category: Poetry
वह हंसता है
तुम रोते हो? वह हंसता है।
तुम्हें गुस्सा है? वह हंसता है।
तुम खुश हो? वह हंसता है।
तुम्हें ग़म है? वह हंसता है।
तुम अमीर हो? वह हंसता है।
तुम ग़रीब हो? वह हंसता है।
तुम विद्वान हो? वह हंसता है।
तुम मूर्ख हो? वह हंसता है।
तुम चालाक हो? वह हंसता है।
तुम कौन हो? वह हंसता है।
तुम जो भी हो। वह हंसता है।
तुम हंसते हो? देखो वह पागल है।
हां-हां पागल है। वह तो पागल है।
वह तो पागल है।
वह तो पागल है।
है?
२५ नवंबर, २०००
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Prestige
----Jeevkant
Again Dumriwalih has not been in sight for some days. When she comes, she is continuous. There are four families around this courtyard. She does the sundry works for all of them. Now she is seen at the tubewell with a pile of utensils and washing them with ash. And now she will be helping at the stonemill, grinding the grains to flour.
The courtyard is swept with cowdung and water on the occasions of festivals. The sweeping was done more frequently before than it is today. Now it is only on festivals.
There was a time when the courtyard was broomed everyday. It is not so now. Conflict may be cause for it. Primacy is changed now. Washing clothes and bathing with soaps are more important. Brooming the courtyard is ignored.
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बोधात्मक भाषाविज्ञान
गिलेस फ़ॉकनर
पिछले 25 वर्षों में बोधात्मक भाषाविज्ञान का उद्भव भाषा, संकल्पनात्मक प्रणाली, मानव बोध और समान्य अर्थ संरचना के अध्ययन में एक शक्तिशाली दृष्टिकोण के रूप में हुआ है।
भाषा के अंतर्गत यह मूल संकल्पनात्मक वर्गों यथा काल व स्थान, दृश्य व घटना, वस्तुएं एवं प्रक्रियाएं, गति एवं स्थिती, बल एवं प्रोत्साहक आदि को संबोधित करता है। यह ध्यान एवं दृष्टिकोण, स्वत्व एवं इच्छा जैसे विचारत्मक एवं प्रभावात्मक वर्गों से संबंधित बोधकारी तत्वों को संबोधित करता है। (टाल्मी, 2000, पृ.3) ऐसा करने के लिए यह व्याकरण की एक संवृद्ध परिकल्पना क विकास करता है जो कि मूलभूत बोधात्मक योग्यताओं को परिलक्षित करती है। ये योग्यताएं निम्न हो सकती हैं: (लैंगेकर, 1987, 1991)