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छप्पर का छेद
छप्पर के एक छेद से
आती अस्ताचल सूरज की
गोल मटोल सी एक किरण
एक प्रकाश का ठप्पा
सारी दुनिया जैसे उसमें समायी है
देखो वो बादल जा रहे हैं
पीछे चिडिया जा रही हैं
आंख मिचौनी का खेल चल रहा है
अभी बादल था अभी गायब हो गया
कुछ देर के लिए
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ज्ञान की देवी
अज्ञानता, तुम महान हो, अजेय हो।
अज्ञानता, तुम ज्ञान की देवी हो।
दुनिया का हरेक वह कण
जिसमें जान है
तुम्हारी ही कृपा से
तुम्हें संज्ञा दी ज्ञान की
और तुम्हे बना डाला
तुम्हारा ही दुश्मन
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दुनिया का आकार
जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूं मैं
सुना था, दुनिया के आकार के बारे में
सुना था, दुनिया छोटी होती जा रही है
सत्य था वो।
एक गांव, एक क्षेत्र, एक देश एक दुनिया
वही लोग, वही जीव, वही पौधे
एक घर है मेरा
आंखे खुली तो छ्प्पर का एक छेद मैने देखा था
आज जब बंद होने को है
वही मेरी आंखों के सामने है
आंख के खुलने और बंद होने के बीच
घूमती है मेरी दुनिया।
जुलाई, २०००