दुनिया का आकार

जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूं मैं
सुना था, दुनिया के आकार के बारे में
सुना था, दुनिया छोटी होती जा रही है
सत्य था वो।
एक गांव, एक क्षेत्र, एक देश एक दुनिया
वही लोग, वही जीव, वही पौधे
एक घर है मेरा
आंखे खुली तो छ्प्पर का एक छेद मैने देखा था
आज जब बंद होने को है
वही मेरी आंखों के सामने है
आंख के खुलने और बंद होने के बीच
घूमती है मेरी दुनिया।

जुलाई, २०००

ज्ञान की देवी

अज्ञानता, तुम महान हो, अजेय हो।
अज्ञानता, तुम ज्ञान की देवी हो।
दुनिया का हरेक वह कण
जिसमें जान है
तुम्हारी ही कृपा से
तुम्हें संज्ञा दी ज्ञान की
और तुम्हे बना डाला
तुम्हारा ही दुश्मन
और ज्ञान के सिपाही बन
चले तुम्हें फतह करने
और तुम बैठी हंस रही हो
अपने फैलाए जाल में फंसे
शिकार को देखकर
छ्टपटाते, मरते।
अनन्तकाल तक चलता आ रहा
तुम्हारा यह खेल
अनन्तकाल तक चलता चला जाएगा।
कितने आए, गए
आएंगे जाएंगे
सभी की अभिलाषा
तुम्हें जीतने की
सभी पराजित हुए
पर तुम हमेशा रहीं
अपराजित।

हे विश्वराज्ञी , विश्व की एक्मात्र मलिका
अज्ञानता, तुम्हें मेरा शत-शत नमन।

जून, २०००

छप्पर का छेद

छप्पर के एक छेद से
आती अस्ताचल सूरज की
गोल मटोल सी एक किरण
एक प्रकाश का ठप्पा
सारी दुनिया जैसे उसमें समायी है
देखो वो बादल जा रहे हैं
पीछे चिडिया जा रही हैं
आंख मिचौनी का खेल चल रहा है
अभी बादल था अभी गायब हो गया
कुछ देर के लिए
सुन-सान, विरान हो गई दुनिया
फिर कुछ पंछी आए, पीछे बादल आए
दोनो साथ मिलकर खेले
और दुनिया फिर से रंग-बिरंगी
ठप्पा वह उपर उठ रहा
शायद दुनिया भी साथ है
खेल वह अब भी चल रहा
बादल पंछी अब भी छुआ-छुई का आनंद ले रहे
बेखबर अपनी दुनिया के उपर उठने से
देखते देखते ओझल हो गया वह ठप्पा
वह दुनिया न रही, न वह बादल, न पंछी

बैठा इंतजार कर रहा एक
शायद कल भी वो दुनिया
इसी जगह फिर से आए

४ जनवरी, २०००